गद्य पद्य संगम

www.hamarivani.com

बुधवार, 13 मई 2015

मुक्तक

मोहब्बत की उम्मीद पे ही जिन्दगी सँवरती है
झुकी - झुकी नजरों में मोहब्बत बसीं रहती है
मोहब्बत में ही सब कुछ बयां हो जाता है यारों
इशारे ही सबकुछ है जो लबों पे नहीं आती हैं।
     @रमेश कुमार सिंह/२९-०४-२०१५
   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें