tag:blogger.com,1999:blog-15875726271418516932023-11-15T05:59:20.387-08:00गद्य पद्य संगम रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-37308345182442567702015-06-08T03:07:00.003-07:002015-06-08T03:07:55.779-07:00मुक्तक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~<br />
नज़र से नजर मिली तो मुलाकातें बढ गई।<br /> हमारे तुम्हारे सफर की कुछ बातें बढ़ गई।<br /> हर मोड़ पर खोजने लगी तुम्हें मेरी आँखें,<br />ऐसा हुआ मिलन कि हर ख्यालों में आ गई।<br />
@रमेश कुमार सिंह </div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-69265047896057111752015-05-14T19:01:00.000-07:002015-05-14T19:01:06.414-07:00दो महीना आठ दिन (संस्मरण)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
मनुष्य एक समाजिक प्राणी है जो समाज में रहकर हमेशा आगे बढने का प्रयास करता है। शायद यही प्रयास उसके जीवन में रंग लाता है। इनका जीवन, असीम इच्छाओं एवं आवश्यकताओं से भरा पड़ा है। इनकी आकांक्षाएँ ही इन्हें आगे बढने को प्रेरित करती है। शायद इसी का थोड़ा बहुत प्रभाव मेरे उपर है और मैं भी आगे बढ़ने के लिये हमेशा प्रयास करता हूँ।<br /> मुझे ऐसा लगा कि हाईस्कूल में मौका मिल सकता है। तो क्यों न उसके लिए प्रयास करूँ। इन्तजार था तब तक बिहार सरकार के शिक्षा विभाग से शिक्षकों की बहाली का विज्ञापन निकाल ही दिया। विज्ञापन जब मैं देखा तो मुझे लगा कि बड़े बच्चों को पढाने के लिए अच्छा मौका है। और मैं आठ जिला में आवेदन जमा कर दिये। बाद में पता चला कि सभी जिलों का काउंसिलिंग का दिन एक ही तारीख को पड़ गयी है। मैं पड़ा असमंजस में कि अब क्या करें ? किसी एक जिला का चुनाव करना था जहां से आसानी से नियुक्त पत्र मिल जाए। सभी जिला को छोड़कर दो जिला का चुनाव किया जिसमें पहला औरंगाबाद तथा दूसरा जिला भोजपुर। इसके बाद दोनों में शामिल कैसे हुआ जाय ? यह प्रश्न सामने खड़ा हो गया। दोनों जिला के बिच की दूरी लगभग सौ किलोमीटर रही होगी । अगर शिक्षक बनना है तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा। तभी अचानक मेरे अन्दर एक तरकीब आई कि क्यों न बाइक का सहारा लिया जाए और यही हुआ। मैं बाइक चलाने का उतना जानकार नहीं था कि इतना लम्बा सफर कर सकूँ।<br /> तब तक काउन्सिलिंग की तारीख आ गई। सभी प्रमाणपत्र के साथ तैयारी हो चुकी थी। और एक अच्छे बाइक चालक का भी चुनाव कर लिए थे। अब सुबह में निकलने की तैयारी हो गई थी। सूर्य की किरणें उगने से पहले ही ठन्ढे-ठन्ढे बयारों को चिरते हुए नेशनल हाईवे-दो पथ पर औरंगाबाद की दिशा में अपनी मोटर साइकिल आगे बढने लगी। ९:०० बजे तक काउन्सिल स्थल पर पहुँच गये। वहाँ पर काफी भिड़ मची हुई थी उसी भिड़ के एक पंक्ति में मैं जाकर खड़ा हो गया। अपनी बारी की प्रतीक्षा में इन्तजार करने लगा। अंन्तत: ११:०० बजे तक वहाँ के कार्य का पुरा निपटारा हो गया। इसके बाद हमारे चाचा ही चालक के रूप में सहयोग दे रहे थे उनसे सलाह मशविरा करने के बाद आरा(भोजपुर) काउंसिल स्थल का चयन किया गया और चलने की तैयारी हो गई।<br /> सूर्य की रोशनी का ताप बढते क्रम में था। साथ -साथ हवाये भी गर्म चलने लगी थी। पथ पर धुल भरे कणों का जमाव था जो हवाओं के साथ मिलकर सैर कर रहे थे उन्हीं के बिच से हमारी मोटर साइकिल औरंगाबाद – डेहरी पथ पर आरा के लिए गुजरने लगी । डेहरी से विक्रम गंज होते हुए आरा पहुँचे। काउंसिल स्थल का पता लगाकर ४:४५ सायंकाल अन्दर प्रवेश कर गये। और काउन्सिलिग करा लिए। लौटने की बात सोचने लगे।<br /> सूर्य अपनी रोशनी को अच्छे तरीके से समेट चुके थे गदहवेला का समय था धिरे-धिरे अन्धकार छानेलगा पथ पर सूर्य की रोशनी के जगह मानव निर्मित रोशनी आने लगी उसी रोशनी में हमारी मोटर साइकिल आरा-मोहनिया नेशनल हाईवे -३० पथ पर आगे की तरफ बढने लगी । दिन भर चलने के वजह से इतना थकान हो गया था कि आगे बढने की हिम्मत नहीं कर रही थी फिर क्या बिच में आकर एक रिश्तेदार के यहाँ ठहर जाते हैं।वहा रात्रि विश्राम करने के बाद पुनः सुबह में अपने घर की तरफ चल दिये।<br /> सभी प्रकिया से गुजर चुके थे अब इन्तजार था नियुक्ति पत्र का कि कब मिलेगा। उस समय मैं सासाराम में था। मेरे यहाँ मेरे घर से दूरभाष से ज्ञात हुआ कि १५ मई २०१३ को आरा से नियुक्ति पत्र आया है। मुझे सुनकर खुशी हुई। लेकिन दुख तो तब हुआ जब योगदान के समय स्वास्थ्य प्रमाणपत्र की आवश्यकता पड़ती है और मैं उसे बनवाने के लिए कैमूर बिहार के १६-०५-२०१३ को सदर अस्पताल भभुआ गया और वहाँ आवेदन भर कर जमा कर दिया थोड़ी देर बाद पता लगाया तो वहाँ का लिपिक सीधे पैसे की बात कही पैसा दीजिएगा तो दो घण्टा के अन्दर आपको। प्रमाणपत्र मिल जायेगा। मैं दंग रह गया कि बिना पैसे दिये कोई कार्य नहीं हो सकता है । बहुत सोचने वाली बात थी कि इतने भ्रष्ट कर्मचारी होगे जो सरकार के द्वारा जनता की सेवा। के लिए बैठे हुए हैं वहीं लोग जनता से इस तरीके से व्यवहार करते हैं। क्या करें मजबूरी थी देकर के प्रमाणपत्र बनवाना पड़ा ।<br /> प्रमाणपत्र पत्र बन जाने के बाद मैं बस के द्वारा उच्च माध्यमिक विद्यालय धनगाई भोजपुर पहुँच गया। तो विद्यालय पर प्रधानाध्यापक नहीं थे। पता लगाकर उनके आवास पर मैं पहुँचा। उनसे परिचय हुआ और नियुक्ति पत्र का छायाप्रति देकर वापस घर चला आया।<br /> दूसरी बार विद्यालय पर पहुँच गया,पहुँचते ही विद्यालय के बारे में जानकारी प्राप्त कर लिया तो मैं अवाक रह गया कि ऐसा विद्यालय भी होता है। सोचने वाली बात है कि दो रूम एक वरामदा और एक कार्यालय इसी में वर्ग दस तक का पढाई का संचालन हो रहा था। कार्यालय का यह हालत था कि उसमें दो कुर्सी एक टेबल के बाद तीसरी कुर्सी को उसमें जाने के लिए उसमें से एक कुर्सी को निकलने का इन्तजार करना पड़ता था। चावल भी उसी में अपना स्थान बनाया हुआ था जो मिड में मिड के लिये रखा गया था। खैर इन सब चीजों से मुझे मतलब नहीं रखना था ।<br /> मुझे तो मतलब अपने कार्य से रखना था लेकिन वहाँ के लोगों का दुर्भाग्य कहे कि अपना दुर्भाग्य कहें ये मैं समझ नहीं पा रहा था। वहा पर हाईस्कूल का कार्य ही संचालन नहीं हो रहा था । मुझे याद है सब कार्य जो कागजी था आरा से विद्यालय तक स्वयं करना पड़ता था बहुत समस्या थी जिसको झेलना पड़ता था वैसी स्थिति बिते समय में नहीं आईं थीं। लेकिन नौकरी करना है तो बहुत सी बातों को नजर अंदाज कर चलना पड़ता है अन्ततः चौबीस मई दो हजार तेरह को विद्यालय में योगदान कर लिया तब तक पाँच जुन से छब्बीस जून तक ग्रीष्मकालीन अवकाश हो जाता है।<br /> फिर विद्यालय सताईस जून को पुनः खुलता है वहाँ गया उपस्थिति बनाकर वापस घर चला आया मन नहीं लग रहा था कैसे लगेगा ? जीस पद के लिए गये थे उस पद का कोई कार्य ही नहीं था। बच्चे ही नहीं थे। उसी में प्रारंभिक विद्यालय के बच्चों को पढाया करता था। इसमें किसका कसूर था मेरे भाग्य का मा फिर सरकार का समझ नहीं पा रहा था इसी उलझन में रहकर किसी तरह एक- एक दिन बिता रहा था। दूसरे जिलों में भी प्रयासरत रहा ।तभी ईश्वर ने मेरे उपर एक नजर डाली और शायद मेरे कष्टों को परखकर इस जेल से छुड़ाने की कोशिश किया हो और छुड़ा भी लिया। जुलाई माह के अन्त में ही रोहतास एवं औरंगाबाद दोनों जिला से नियुक्ति पत्र मेरे घर पहुँच गया।इसकी जानकारी मुझे घर वाले के माध्यम से मिली मैं सताईस जुलाई को फौरन वहाँ से घर की तरफ चल दिया।और मैं रोहतास जिला को पसंद किया और रामगढ चेनारी में जाकर उस विद्यालय के बारे पता लगाया। लोगों ने प्रारम्भ में बहुत ही व्यवहारिकता दिखाया और मुझे वहाँ आने के लिए प्रेरित किया। मैं सोचने का वक्त लेकर वापस घर चला आया। दूसरे दिन मैं उत्क्रमितम माध्यमिक विद्यालय धनगाई भोजपुर पहुँचा तो सोच विचार के उपरांत मैं तीन अगस्त दो हजार तेरह को अपने पद से परित्याग पत्र दे दिया। थोड़ी समस्या आईं लेकिन उससे निपटते हुए वहाँ से विदा हो लिया।और वापस घर की तरफ चल दिये। और पाँच अगस्त दो हजार तेरह को पुनः उच्च माध्यमिक विद्यालय रामगढ चेनारी रोहतास में योगदान कर अपने कार्य में लग गये।<br /> यही हमारा दो महीना आठ दिन का सफर रहा।जो एक तरफ कष्टकारक एवं परेशानियों से भरा हुआ वहीं दूसरी तरफ इतने कम दिनों में ज्यादा कुछ सीखने को मिला समस्याओं से निपटते हुए आगे कैसे बढना है यही जानकारी हासिल हुई।<br />@रमेश कुमार सिंह /०६-०४-२०१५</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-41426699581409374942015-05-13T05:32:00.000-07:002015-05-13T05:32:04.919-07:00मुक्तक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मोहब्बत की उम्मीद पे ही जिन्दगी सँवरती है <br />झुकी - झुकी नजरों में मोहब्बत बसीं रहती है <br />मोहब्बत में ही सब कुछ बयां हो जाता है यारों<br />इशारे ही सबकुछ है जो लबों पे नहीं आती हैं।<br /> @रमेश कुमार सिंह/२९-०४-२०१५ <br />
</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-74834428506687411252015-05-07T02:26:00.000-07:002015-05-07T02:26:03.695-07:00फर्ज <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मेरे फर्ज को आप उपकार मत समझ जाईए।।<br />
<br />उपकार कहकर मेरे कर्तव्य को मत दबाईए।।<br />
<br />मुझे जिन्दगी मिली है फर्ज को निभाने के लिए।।<br />
<br />रत्न, दर्जा देकर खुद के नजरों में मत झुकाईए।।<br />
<br /><br />@रमेश कुमार सिंह</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-11406337833778429132015-04-20T04:27:00.002-07:002015-04-28T00:19:34.968-07:00ईश्वर,गुरु और आत्मा (कविता )<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
ईश्वर भाग्य विधाता ही नहीं बल्कि,</div>
इस सृष्टि के पालनकर्ता, रचनाकार हैं।<br />
सूक्ष्म से लेकर विशालकाय जीवों में,<br />
आत्मा रूप अंश को देते आकार है।<br />
<br />
<br />
इन छोटे बड़े जीवों को आदि से ही,<br />
सीखने-सीखाने का गुरु देते हैं प्रकार।<br />
नैतिकता की बातें सीखकर ये लोग,<br />
कर लेते हैं अपने जीवन को साकार।<br />
<br />
<br />
जब प्रार्थना करने से मिल जाता है ज्ञान,<br />
आत्मा के रास्ते मन में बना लेता है आकार।<br />
जब ईश्वर प्रार्थना के जरिए ही आत्मा से,<br />
कर लेता है मिलन हो जाते हैं एक प्रकार ।<br />
----------रमेश कुमार सिंह ♌</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-29672658029663550252015-04-14T00:19:00.002-07:002015-04-14T00:23:24.604-07:00उदासीनता (कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
मनुष्य के,<br />उदासीनता का मुख्य कारण<br />आदर्शवाद का अभावग्रस्त<br />अर्थहीन जीवन का होना प्रतीत<br />प्रतिस्पर्धा भरे संसार में भयभीत<br />उदासीनता इन्हें तब आती है<br />जब समस्या से निपट नहीं पाते हैं <br />आक्रामकता उदासिनता का,<br />प्रतिरोधक होकर जब,<br />कोई हद को पार करता है।<br />तब वापस उदासीनता में ले जाता है।<br />इन्हें जरूरत है प्रेरणा की,<br />ऊर्जावान आध्यात्मिक ज्ञान की,<br />आजके संसार को भली-भांति जानने की,<br />अर्थहीन जीवन के भ्रम को हटाने की,<br />नहीं तो मनुज पर छाये रह जाती है।<br />बदलीं की तरह उदासीनता।<br />-----------रमेश कुमार सिंह<br />
<br /></div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-57069670661759114032015-03-30T18:55:00.003-07:002015-04-07T02:13:08.607-07:00मुस्कान स्मित (हाइकु)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
(१)<br />
आँखों में आशु,<br />
हृदय पिघलना,
<br />
कष्टकारक,<br />
(२)
<br />
मुस्कुराहट,<br />
बचपन के साथ,<br />
जीवन शैली।<br />
<br />
<br />
(३)<br />
नव अंकुर,<br />
अंकुरित होते हैं<br />
मुस्काते हुअे।<br />
<br />
<br />
(४)<br />
बचपन के<br />
मुस्कान जीवन की,<br />
प्रवाहमयी,
</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-9469383757998640182015-03-29T19:46:00.002-07:002015-03-31T10:15:02.277-07:00कल्याण करें (कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आओ मिलकर सम्मान करें।<br />
मात्रृभुमि कल्याण करें।<br />
वृक्षों को ना काटे हम।<br />
फूलों को ना तोड़े हम।<br />
दूषित,पानी को ना करें हम।<br />
बर्बाद,पानी को ना करें हम।<br />
आओ मिलकर सम्मान करें।<br />
<br /><br />
जल है अमूल्य खजाना।<br />
हम सभी को इसे है बचाना।<br />
यह जानकारी दे हम सबको।<br />
आओ मिलकर सम्मान करें।<br />
एक वृक्ष बराबर एक सन्तान है हम।<br />
ये नारा जग जग में फैलाए हम।<br />
आने वाले लोगों के लिए,<br />
ये चिजें बचाये हम।<br />
आओ मिलकर सम्मान करें।<br />
<br /><br />
सोचों कल ये खत्म हो जाएगा।<br />
इन्सान इन्सान का भक्षक हो जायेगा।<br />
इस खतरा को उदय ना होने दे,<br />
इसलिए कहता हूँ मैं ,<br />
मात्रभुमि कल्याण करें<br />
आओ मिलकर सम्मान करें।<br />
<br /><br />
~~~~~~~~~रमेश कुमार सिंह ♌</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-13241792833553204502015-03-22T17:37:00.003-07:002015-03-22T17:37:28.965-07:00निम्न स्तर••<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
लोग आये दिन हर जगह हर विभाग में चारों तरफ चाहे वो सरकारी हो या गैर सरकारी यह निम्न स्तर शब्द आता है आखिर यह निम्न स्तर शब्द क्या है? इसे हमें जानने की आवश्यकता है चूंकि हमारे यहाँ बहुत ही ज्यादा लोग निम्न स्तर के होते हैं और निम्न स्तर के लोग एवं कर्मचारीयो को देख रहे हैं किसी भी जगह निम्न स्तर के लोगों को जीवन भर निम्न स्तर बने रहना है। निम्न स्तर के लिए आवास व्यवस्था तो कैसी ? निम्न स्तर के ये लोग यह माँग करें कि हमारे निम्न स्तर बच्चों के लिए निम्न स्तर की बाल संरक्षण की जाय।
सबसे पहले आपका ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ।कि इनके अन्दर निम्न स्तर की वृत्ति एक संक्रामक रोग की तरह है।जिसके कीटाणु ------जर्म्स नस-नस में फैल जाते ,जिससे आदमी की महत्वाकांक्षा मर जाती है।
कार्यशक्ति जबाब दे जाती है,किसी भी चीज़ को लेकर न कह सकने का साहस उसमें नहीं रह जाता।वह केवल दूसरों का मुह ताकने हाँ -हाँ करने की एक मशीन में तब्दील हो जाता है जिसका सारा ध्यान निम्न स्तर की कुछ आवश्यकताओं को छोड़कर और किसी चीज़ पर नहीं टीक पाता परिणाम होता है कुछ निम्न स्तर की मांगे कुछ निम्न स्तर के प्रस्ताव भी पारित किये जाते हैं।
यह निम्न स्तर की वृत्ति इनके अन्दर इस तरह घर कर गई है कि इनकी जीवन सम्बन्धी धारणा निम्न स्तर की होकर रह गई है।ये हँसते हैं तो वह हँसीं निम्न स्तर की होती है प्रेम करते हैं तो वह प्रेम निम्न स्तर की होती है।
केवल इतना ही कहना है इस निम्न स्तर की वृत्ति से छुटकारा पाने के लिये हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि आज से हम कहीं भी किसी भी रूप में अपने साथ इस शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे। इसलिए कोई दूसरा नाम बदल कर कुछ और रखे तो अच्छा होगा।रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-46493945637091598412015-03-14T07:29:00.001-07:002015-03-30T04:59:50.861-07:00मुक्तक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यादों के झरोखों में मिलकर तैरते रहेंगे,<br />
यादों रूपी दरिया में डुबे तो खो जायेंगे,।<br />मिलने की कोशिश करते रहना नहीं तो,<br />एक दूजे को सदा के लिये भूल जायेंगे।<br /><br />अगर सभी कोशिश हमेशा करते रहेंगे।<br />एकदिन जरूर आपस में मिल जायेंगे।<br />उसके बाद खुशियाँ एक दूजे में बाटेंगे,<br />फिर हमेशा की तरह बात करने लगेंगे।<br /> </div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-33825010425341788112015-03-14T04:26:00.001-07:002015-04-28T00:22:40.995-07:00निम्न स्तर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हम लोग आये दिन हर जगह हर विभाग में चारों तरफ चाहे वो सरकारी हो या गैर सरकारी यह निम्न स्तर शब्द आता है आखिर यह निम्न स्तर शब्द क्या है? इसे हमें जानने की आवश्यकता है चूंकि हमारे यहाँ बहुत ही ज्यादा लोग निम्न स्तर के होते हैं और निम्न स्तर के लोग एवं कर्मचारीयो को देख रहे हैं किसी भी जगह निम्न स्तर के लोगों को जीवन भर निम्न स्तर बने रहना है। निम्न स्तर के लिए आवास व्यवस्था तो कैसी ? निम्न स्तर के ये लोग यह माँग करें कि हमारे निम्न स्तर बच्चों के लिए निम्न स्तर की बाल संरक्षण की जाय।<br />
सबसे पहले आपका ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ।कि इनके अन्दर निम्न स्तर की वृत्ति एक संक्रामक रोग की तरह है।जिसके कीटाणु ------जर्म्स नस-नस में फैल जाते ,जिससे आदमी की महत्वाकांक्षा मर जाती है।<br />
कार्यशक्ति जबाब दे जाती है,किसी भी चीज़ को लेकर न कह सकने का साहस उसमें नहीं रह जाता।वह केवल दूसरों का मुह ताकने हाँ -हाँ करने की एक मशीन में तब्दील हो जाता है जिसका सारा ध्यान निम्न स्तर की कुछ आवश्यकताओं को छोड़कर और किसी चीज़ पर नहीं टीक पाता परिणाम होता है कुछ निम्न स्तर की मांगे कुछ निम्न स्तर के प्रस्ताव भी पारित किये जाते हैं।<br />
यह निम्न स्तर की वृत्ति इनके अन्दर इस तरह घर कर गई है कि इनकी जीवन सम्बन्धी धारणा निम्न स्तर की होकर रह गई है।ये हँसते हैं तो वह हँसीं निम्न स्तर की होती है प्रेम करते हैं तो वह प्रेम निम्न स्तर की होती है।<br />
केवल इतना ही कहना है इस निम्न स्तर की वृत्ति से छुटकारा पाने के लिये हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि आज से हम कहीं भी किसी भी रूप में अपने साथ इस शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे। इसलिए कोई दूसरा नाम बदल कर कुछ और रखे तो अच्छा होगा।<br />
--------रमेश कुमार सिंह ♌<br />
<ul>
<li>--------</li>
</ul>
</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-87056045862500952612015-03-11T17:39:00.001-07:002015-03-12T07:37:44.672-07:00एक शहर (कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक शहर ऐसा भी,
<br />
जहां न कोई मतलबी,
<br />
जहां न कोई दुखदायी,
<br />
जहां सभी हैं सुख में गुल,
<br />
चारों ओर है शांति शांति,
<br />
मारा मारीं का हुआ है अन्त,
<br />
नहीं जहां कोई आतंक,
<br />
वहाँ जाने को तरसते लोग,
<br />
जहां ॠषि लगाते भोग,
<br />
धन दौलत से वह सम्पूर्ण,
<br />
भ्रष्टाचार का हुआ है अन्त,
<br />
इस काव्य को जो भी पढते
<br />
मुझसे पुछते उसका नाम
<br />
उसका नाम है बेनाम।।।
<br />
~~~~~~~~रमेश कुमार सिंह </div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-9677407595274035372015-03-11T03:06:00.002-07:002015-03-11T08:33:03.086-07:00सुबह सुबह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अरूणोदय के समय में,<br />सुनहरे तीर बरसाते।<br />किरण में अन्तर्निहित हुए,<br />विखरने लगा धरातल पें।<br />
जाग गई सभी वनस्पतिया ,<br />जाग गई सब मानवता।<br />चहचहाने लगी सब चिड़ियाँ।<br />लिए भाव कोमल विखेरता।<br />---------रमेश कुमार सिंह </div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1587572627141851693.post-32114792692128030592015-03-09T19:10:00.000-07:002015-03-09T19:10:44.123-07:00"लोभ"(कहानी)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक बार की बात है कि मैं बनारस जा रहा था। कर्मनाशा स्टेशन से देहरादून एक्सप्रेस पकड़कर मुगल सराय पहुँचते हैं। वहाँ पर गाड़िया कुछ ज्यादा ही समय रूककर अपनी थकान मिटाती है।मैं गाड़ी से उतरकर बाहर प्लेटफार्म पर आराम करने लगा सुबह सबको प्यारी लगती है चाहे कोइ भी प्राणी हो कहावत भी है सुबह अच्छा नही तो पूरा दिन अच्छा नहीं।<br />
मैं बाहर आराम से बैठा हुआ था गाड़ी के चलने का इन्तजार था।तभी अचानक मेरी नजर एक कर्तव्यनिष्ठ इन्सान की तरफ गई उसके अन्दर शराफत तथा इमान्दारी झलक रही थी।कहीं से आकर हमारे बगल में बैठा हुआ था।उम्र लगभग ४८-५० रही होगी।वह गरीब था अपनी गरीबी विताने के लिये कोई छोटा सा धन्धा किया हुआ था। फेरी लगाकर कंगन बेचा करता था।इसी धन्धा के बलपर अपने पूरे परिवार का भरण-पोषण करता था ऐसा मालूम होता था उस समय, उसे पता नहीं था कि आज का दिन कष्टदायी होगा।<br />
तभी उधर अपनी डियूटी का दिखावा करते हुए एक जी०आर०पी० का सिपाही आ रहा था रैंक हवलदार था।कानून के रास्ते पर चलने वाला धिरे-धिरे उस व्यक्ति के तरफ बढ़ा आ रहा था।उस गरीब आदमी के पास आ पहुँचा।<br />
"इस झोला में क्या रखा है"-हवलदार बोला।<br />
"कुछ नहीं हुजूर अपना सामान है"-आदमी बोला।<br />
"कैसा सामान है "-हवलदार बोला।<br />
"छोटा मोटा धन्धा है चूड़ी कंगन बेचने का फेरी लगाते हैं गाँवों में।"-आदमी इमान्दारी दिखाते हुए बोल दिया।<br />
"नहीं तुम झुठ बोल रहे हो दिखाओ।"-हवलदार बोला।<br />
गरीब आदमी अपना झोला खोलकर दिखाने लगा।हवलदार जब उस आदमी का झोला का सामान देखा तो इसके अन्दर लालच जाग उठा ।वह आदमी समझ गया अब मूझे इससे कोई नहीं बचा सकता।जो गरीबों को जीते जागते नोचते हैं ।मैं उस घटना को अपनी आँखों से देख रहा था चुप-चुाप मैं बोल नहीं पा रहा था इसलिए कि मुझे भी उस सिपाही के व्यवहार से डर लग रहा था ।<br />
"ये कंगन कितने में बेचते हो"-हवलदार बोला।<br />
"बहुत ज्यादा नहीं हुजूर चालिस रुपये जोड़ा बेचता हूँ।"-आदमी बोला शालीनता से।<br />
"चलो दो जोड़ी कंगन मुझे दो"-हवलदार बोला।<br />
"लिजीए हुजूर।"आदमी दे दिया सोचा कि पैसे से मांग रहे है।<br />
"पैसा दिजीए हुजूर।"-आदमी आशा लगाकर बोला।<br />
"ऐ चुप पैसा कैसा"-हवलदार रौब से कहा।<br />
उस कंगन के लिये मानो गरीब आदमी का कलेजा ही निकला जा रहा था।पैसा माँग रहा गिड़गिड़ा रहा था।अपनी गरीबी का तकाजा देकर पैर छान लिया।लेकिन दुष्ट हवलदार के उपर कोई दया नहीं आईं।कोई फर्क नहीं पड़ा जब गरीब आदमी अपना कंगन लेने लगा तब उस हवलदार के आँखों पर लोभ रूपी पट्टी बध जाती है और कानून और अपनी वर्दी उसको दिखाई नहीं दिया और अपना असली रूप दिखा ही दिया।<br />
हवलदार उस आदमी को एक हाथ उसके चेहरे पर जड़ दिया।वह मूह के बल प्लेटफार्म पर गीर गया।रूदन करने लगा और उस रूदन भरी आवाज़ में ही अपने कंगन के लिए याचनाएँ, वह हवलदार इतना होने के बाद भी अपने आप को गौरवान्वित हो रहा था कि मैं बहुत अच्छा कार्य किया। लेकिन उसकी अच्छाई में निचता का भाव दिखाई दे रहा था।कैसी है ये दुनिया,इस दुनिया में कैसे हैं इन्सान और इन इन्सानो में से इन्सानियत की रक्षा के लिए रखे गये हैं। इस तरीके की हैवानियत पर उतर आते है जिसकी कोई सीमा नही है।आज इतना लोभ बढ गया है कि इसके चलते मानव अपनी मानवता सहित अधिकार को भी खो बैठा है।<br />
तभी संकेत हरा मिला सीटी बजी ,गाड़ी पर चढ़ा और बनारस के लिए चल दिये यही सोचते हुए मनुष्य का लोभ मनुष्य को ही खा रहा है।<br />
---------------------------रमेश कुमार सिंह ♌</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0